
शिवाजी की मौत कैसे हुयी ?
शिवाजी की मौत 3 अप्रैल 1680 को हुयी. शिवाजी की मौत मराठा इतिहास का अनसुलझा सवाल है.तत्तकालीन इतिहासकारो ने अपनी किताबों में शिवाजी महाराज की मौत के बारे में लिखकर रखा है.इतिहास संशोधको ने दावा किया है की छत्रपति शिवाजी की मौत प्राकृतिक नही थी.छत्रपति शिवाजी का खून किया गया था.शिवाजी के खून का सबसे ज्यादा शक जिस व्यक्ति पर है उसका नाम अण्णाजी दत्तो है.
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अण्णाजी दत्तो छत्रपति शिवाजी का एक प्रमुख मंत्री था.छत्रपति शिवाजी की मौत रायगड किल्ले पर हुयी.उस वक़्त रायगड पर महाराणी सोयारबाई, युवराज राजाराम और छत्रपति शिवाजी का मंत्रिमंडल उपस्थित था.इतिहासकारो की माने तो शिवाजी के मृत्यु के समय रायगड पर कुल 22 लोग थे.जिनमे अण्णाजी भी था.
शिवाजी की मौत – शिवाजी की मौत के बारे में तत्कालीन सबूत
मराठा इतिहास पर लिखी गयी “सभासद बखर” सबसे विश्वसनीय किताबों में से एक है. इस किताब को शिवाजी महाराज के समकालीन “कृष्णाजी अनंत सभासद” ने लिखा था.इस किताब में कृष्णाजी ने छत्रपति शिवाजी की मौत के बारे में लिखा है. किताब में साफ़ तौर पर बताया गया है की,शिवाजी की मौत भयंकर बुखार और बिमारी के चलते हुयी थी. कृष्णाजी ने लिखा है की, छत्रपति शिवाजी को खून की उल्टियां हुयी थी.उसके बाद शिवाजी की मौत हो गयी.
तब के अंग्रेजी अधिकारियों ने शिवाजी महाराज की मौत के बारे में अपने उच्च अधीकारियो को ख़त लिखा था.इस ख़त में जिक्र था,की शिवाजी की मौत खून की उल्टियां होने से हुयी है.
पोर्तुगीज पत्रव्यवहारों में भी छत्रपति शिवाजी के मृत्यु के बारेमे लिखा गया है.इन खतो में शिवाजी महाराज के मृत्यु की वजह खून की उलटी को बताया गया है.
शिवाजी की मौत – अण्णाजी दत्तो कौन था
अण्णाजी दत्तो छत्रपति शिवाजी के प्रमुख मंत्रियो में से एक थे. छत्रपति शिवाजी उनका बेहद सन्मान करते थे. इसी सन्मान के चलते अण्णाजी दत्तो को राजदरबार में अलग प्रतिष्ठा प्राप्त थी.लेकिन कई मौकों पर अण्णाजी अपने करीबियों को लाभ पहुचाने के लिए अपने पद का दुरुपयोग करते हुए पकड़े गए थे.जिसका पता छत्रपति शिवाजी को नही चल पाता था.इस बात की भनक युवराज संभाजी को थी.और कई बार वे खुलकर अण्णाजी का विरोध भी करते थे. अपने बारे में युवराज संभाजी का बर्ताव अण्णाजी को पसंद नही था.इसी बात से खफा अण्णाजी युवराज संभाजी को बदनाम करने की हर संभव कोशिश करते थे. अण्णाजी संभाजी को अपने राह में अवरोध समझते थे.
शिवाजी की मौत – सोयारबाई का करीबी था अण्णाजी दत्तो
एक दूसरी व्यक्ति थी जो संभाजी को अपने राह में काटे की तरह मानती थी.वो थी छत्रपति की दूसरी पत्नी महारानी सोयारबाई.सोयारबाई अपने पुत्र राजाराम को मराठा साम्राज्य के वारिस के तौर पर देखना चाहती थी.लेकिन संभाजी के जीते जी यह मुमकिन नही था.इसलिए सोयारबाई भी संभाजी की बदनामी कर उनको शिवाजी से दूर करने की हरसंभव कोशिश करती थी.अण्णाजी दत्तो के ऊपर महाराणी सोयारबाई का हाथ था.संभाजी को बदनाम करने में दोनों का हित था.अण्णाजी जानता था की वो बिना किसी राजपरिवार के सदस्य की मदत के बिना संभाजी की बदनामी नही कर सकता था.और नही संभाजी को अपने रास्ते से हटा सकता था.इसलिए अण्णाजी हमेशा सोयारबाई को संभाजी के खिलाफ भड़काकर अपना हित साधने की कोशिश करता था.

शिवाजी की मौत – छत्रपति शिवाजी का खून करने के पीछे थी राजकीय महत्वाकांक्षा
अण्णाजी दत्तो और महारानी सोयारबाई दोनों ही संभाजी को छत्रपति के तौर पर नही देखना चाहते थे.लेकिन छत्रपति शिवाजी युवराज संभाजी को ही अपना उत्तरधिकारी मानते थे.शिवाजी के होते हुए संभाजी को छत्रपति बनने से कोई नही रोख सकता था.इसलिए अण्णाजी दत्तो और महाराणी सोयारबाई ने मिलकर शिवाजी का खून किया. इस पूरी साजिश में महाराणी सोयारबाई का अण्णाजी को समर्थन था.शिवाजी को चाकू, तलवार या अन्य किसी रास्ते से मारना यानी सीधे सीधे मराठा साम्राज्य के खिलाफ बगावत करने जैसा था.इसलिए शिवाजी का खून उन्हें जहर देकर किया गया.मृत्यु के कुछ दिन पहले से शिवाजी बिमार थे.इसलिए उनके मौत पर किसीको संदेह नही हुआ.
शिवाजी की मौत – पहले से तय था शिवाजी का खून?
छत्रपति शिवाजी महाराज को मारने की साजिश पहले भी हो चुकी थी.लेकिन स्वराज्य के चलते शिवाजी महाराज ने इन बातों पर कभी ध्यान नही दिया.शिवाजी महाराज को अपने जान की परवाह नही थी.वह केवल हिंदवी स्वराज्य के सपने को पूरा होता देखना चाहते थे.इसी सपने के चलते शिवाजी घरेलु विवादों पर कभी ध्यान नही देते थे.उन्हें अपने सरदारों और मंत्रियों पर विश्वास था.उनके मंत्री और पत्नी उनके खिलाफ ऐसी साजिश करेंगे इसका उन्हें अंदाजा नही था.

शिवाजी की मौत – 3 अप्रैल 1680 का दिन
शिवाजी महाराज की मौत के दिन रायगड किल्ला पूरी तरह से बंद था.किले पर आने की अनुमति किसी को नही थी.किले पर कुल 22 लोग मौजूद थे.इनमे शिवाजी की राणीया और 10 साल के युवराज राजाराम भी थे. इसके कुछ महीनों पहले संभाजी के खिलाफ साजिश की गयी. ऐसे ही किसी साजिश में फसाकर अण्णाजी और सोयारबाई ने संभाजी के खिलाफ शिवाजी महाराज के कान भरे थे.इन घरेलु विवादों को दूर करने के लिए शिवाजी ने संभाजी को पन्हाला किल्ले पर जाने का आदेश दिया.तबसे युवराज संभाजी पन्हाला किले पर थे.उन्हें पिता के तबीयत के बारे में कोई खबर नही पोहचती थी.और नही उनका कोई ख़त शिवाजी तक पहुचने दिया जाता था.संभाजी का शिवाजी से दूर होना अण्णाजी के लिए एक अच्छा मौका साबित हुआ.इसी मौके का फायदा उठाकर अण्णाजी ने शिवाजी महाराज के खाने में जहर मिलाया.जहर के चलते शिवाजी को उल्टियां हुयी और उनकी मृत्यु हो गयी.

शिवाजी की मौत – शिवाजी के मौत के बाद क्या हुआ ?
छत्रपति शिवाजी की मृत्यु को गोपनीय रखा गया.उनके पुत्र संभाजी को भी पिता की मृत्यु के बारे में एक महीने तक पता चलने नही दिया गया.महाराणी सोयारबाई और मंत्रियो ने युवराज राजाराम को अगला छत्रपति घोषित कर दिया.राजाराम को छत्रपति बनाने के बाद मंत्रियों ने संभाजी को बंदी बनाने की साजिश रची.क्योंकि अगर संभाजी को इस बात की भनक लगती की उनकी पिता की मौत हो गयी है तो वे रायगड पर आ जाते.इसलिए संभाजी को पता चलने से पहले ही उनको बंदी बनाने की साजिश मंत्रियो ने रची.
लेकिन इस साजिश के बारे में हंबीरराव मोहिते ने संभाजी महाराज को सब बता दिया.यहाँपर जानने वाली बात यह है की हंबीरराव मोहिते महाराणी सोयारबाई के सगे भाई थे और राजाराम उनका सगा भांजा था.लेकिन हंबीरराव जानते थे की गद्दी का योग्य वारिस संभाजी थे.इसलिए उन्होंने अपनी सगी बहन का साथ न देते हुए संभाजी का साथ दिया.
संभाजी को जब पिता की मृत्यु के बारे में पता चला तब उन्हें बेहद दुःख हुआ.संभाजी को नही पता था की उनके पिता का खून हुआ है.सभीको लगता था की शिवाजी बीमारी के चलते गुजर गए.पिता के मृत्यु का पता चलते ही संभाजी ने अपने समर्थकों को साथ लेकर रायगड पर हमला बोल दिया.रायगड को अपने कब्जे में लेंने के बाद संभाजी ने बागी मंत्रियो को बंदी बनाया.अपने खिलाफ हुए इतनी साजिशो के बावजूद संभाजी ने राजधर्म और पुत्रधर्म का पालन करते हुए सोयारबाई और राजाराम को पूरे सन्मान के साथ महाराणी और युवराज का पद बहाल किया.
शिवाजी की मौत – महाराणी सोयारबाई और अण्णाजी दत्तो का क्या हुआ?
संभाजी के छत्रपति बनने के कुछ साल बाद ही महाराणी सोयारबाई ने जहर खाकर आत्महत्या कर ली.संभाजी महाराज ने जिन मंत्रियो को बंदी बनाया उनमे अण्णाजी दत्तो भी थे.इनमेसे कई मंत्री स्वराज्य के शुरुआती दिनों से शिवाजी महाराज के साथ थे.उनका अनुभव और स्वराज्य के प्रति आस्था को देखकर संभाजी ने उन्हें माफ़ कर दिया और कई मंत्रियो को फिरसे मंत्री बनाया.लेकिन इसके कुछ सालो बाद ही अण्णाजी दत्तो ने संभाजी महाराज को जहर देकर मारने की कोशिश की.इस बात से संभाजी बेहद दुखी हुए.अण्णाजी को न सुधरता देख संभाजी महाराज ने उन्हें हाथी के पैरो तले कुचलने का आदेश दिया.और इस आदेश के चलते अण्णाजी की मौत हुयी.